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Thread: GsmIndia salutes the Heroes!!!!!

  1. #1
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    GsmIndia Salutes the Heroe's who sacrificed their lifes in the recent terrorist attack in Mumbai (India).
    Condolences to the Families who lost their loved ones in this incident.

    http://en.wikipedia.org/wiki/Novembe...Mumbai_attacks


    Viru.
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  2. #2
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    A salute for all the hero's.
    Iam proud to be an Indian.

  3. #3
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  4. #4
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  5. #5
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    संघर्षों से डरना कैसा ?

    जीवन एक संघर्ष है। हम अक्सर संघर्षों की तपती धरा से बचने के लिए शीतलता युक्त सरल मार्गों की तलाश करने लगते हैं। हम कृष्ण की तरह अपने मन को टटोलते हैं कि क्या मेरा जन्म जरासंध की सेना से युद्ध करने के लिए हुआ है या फिर संसार को प्रेम और सत्य का संदेश देने के लिए? कृष्ण मथुरा का अपना अधिकार छोड देते हैं और निकल पडते हैं द्वारका की ओर। इसी प्रकार हम भी अनेक अधिकारों के युद्धों को छोडकर अपने अभीष्ट की ओर बढने लगते हैं। लेकिन संघर्ष अपना रूप बदलकर वहाँ भी उपस्थित हो जाता है। गाँधी वकालात करते हैं, उनकी प्रतिष्ठा साउथ अफ्रिका से निकलकर लंदन और भारत में भी प्रतिष्ठापित हो जाती है। परतंत्रता और अस्पर्शता उन्हें व्यथित करती है और वे प्रतिष्ठा को लात मारकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और अछूतोद्धार में लग जाते हैं। गाँधी अहिंसा का संदेश देते हैं और पाकिस्तान निर्माण की घोषणा के साथ ही हिंसा का ज्वालामुखी फूट पडता है। लाखों भारतीयों का हिन्दुस्तान और पाकिस्तान नाम के कारण कत्लेआम होता है। गाँधी जी भी १५ अगस्त १९४७ को चम्पारण की गलियों में नंगे पैर घूम-घूमकर अहिंसा का संदेश देते हैं। वे बार-बार संघर्ष को टालने का प्रयास करते हैं, अहिंसा के मार्ग से उसका हल निकालना चाहते हैं लेकिन संघर्ष फिर उनके समक्ष नवीन रूप में आ खडा होता है। कृष्ण और गाँधी दो युग के दो महापुरुष हैं। दोनों ने ही घृणा और हिंसा के स्थान पर प्रेम और अहिंसा का संदेश दुनिया को दिया। लेकिन दोनों ही युद्धों को रोक नहीं सके। कृष्ण के काल में महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध हुआ और गाँधी के काल में भारत का विभाजन। कैसा आश्चर्य है कि प्रेम का संदेश देने वाले महापुरुषों का अन्त किसी अस्त्र से हुआ! कृष्ण को तीर लगा और गाँधी को गोली।
    संघर्ष हमारी परछाई की तरह है। संघर्ष जीवन का दूसरा नाम है। यदि जीवन है तो संघर्ष भी है। हम संघर्ष का मुकाबला प्रेम से नहीं कर सकते। कृष्ण ने भी अर्जुन से यही कहा था कि जब युद्ध अवश्यम्भावी हो जाए तब उससे विलग होना कायरता है। हम एक युद्ध से भागते हैं, दूसरा युद्ध सामने आ खडा होता है। भारत में १९४८ में श्रीनगर पर कबिलाइयों के माध्यम से किया गया पाकिस्तानी युद्ध और भारत द्वारा घोषित युद्ध-विराम, क्या अंतिम युद्ध सिद्ध हुआ? हमने युद्ध-विराम किया, शान्ति के लिए, लेकिन सन् १९६२ में फिर एक युद्ध ने हमें आ घेरा। इस बार दुश्मन दूसरा था। तब हमने जाना कि हम शान्ति का संदेश देते रहे और दुश्मन एक से दो हो गए। हमने फिर हथियार डाले, अपनी भूमि को चीन के कब्जे में जाता हुआ देखते रहे। कभी शिव जिस कैलाश-पर्वत पर बैठकर सम्पूर्ण संसार का कल्याण करते थे, आज वही कैलाश-पर्वत हम से छिन गया है। हम संघर्षों से भागते रहे और १९६५ में फिर पाकिस्तान ने युद्ध घोषित कर दिया। हमने संघर्ष को फिर बीच में ही छोड दिया और फिर से शान्ति का मार्ग तलाशने लगे। अभी चार वर्ष ही बीते थे कि १९७१ में फिर पाकिस्तान आ चढा। अब देखिए १९४८ में युद्ध उत्तर में प्रारम्भ हुआ, १९६२ में युद्ध उत्तर और पूर्व के मध्य आगे बढा, १९६५ में पश्चिम की तरफ बढा और १९७१ में युद्ध पूर्व की तरफ बढा। दुश्मन बढते गए और अब बांग्लादेश के रूप में एक नवीन राष्ट्र हमारे सामने सीना ताने खडा हो गया। गुजरात, राजस्थान, पंजाब, कश्मीर, उत्तराखण्ड, सिक्किम, पूर्वांचल होते हुए बंगाल तक का सम्पूर्ण सीमांत क्षेत्र युद्ध की विभीषिका से ग्रसित होता रहा। फलतः भारत का तीन-चौथाई क्षेत्रफल संघर्ष से पीडत है। हमने संघर्ष से बचने के लिए पाकिस्तान का निर्माण होने दिया, हमने संघर्ष से बचने के लिए तिब्बत और कैलाश मानसरोवर का बलिदान कर दिया, हमने संघर्ष से बचने के लिए एक और दुश्मन बांग्लादेश को जन्म दे दिया।
    हम फिर भी शान्ति का मार्ग नहीं खोज पाए। क्योंकि शान्ति का मार्ग है ही नहीं। आप जितना शान्ति का मार्ग खोजेंगे उतना ही संघर्ष का प्रसार तीव्र होता जाएगा। १९७१ के बाद सीमाओं से निकलकर युद्ध भारत की गलियों तक आ पहुँचा। एक युद्ध में जितने सैनिक शहीद होते हैं, उससे ज्यादा व्यक्ति प्रतिदिन होने वाली आतंककारी कार्यवाहियों में मर जाते हैं। लेकिन फिर भी हमने पाकिस्तान के साथ दोस्ती का हाथ बढाया। स्वयं प्रधानमंत्री बस में बैठकर पाकिस्तान गए, परिणाम एक नवीन युद्ध - कारगिल युद्ध। हम संघर्षों से बचते रहे और संघर्ष विकराल रूप धारण करके हमारे समक्ष हमें चुनौती देता रहा।
    हम व्यक्तिगत जीवन में भी संघर्षों से मुक्ति का उपाय ढूँढते रहते हैं और संघर्ष नए-नए रूप में चुनौती बनकर हमारे समक्ष खडा हो जाता है। तंदूर में रोटी सेकने के लिए हाथ को तंदूर में डालना पडता है, पेट की गाँठ को निकालने के लिए चीर-फाड करनी ही पडती है, धरती से पानी निकालने के लिए उसके सीने में छेद करना ही पडता है। अतः संघर्षों से भागना कैसा? प्रत्येक संघर्ष को जड से उखाड फको, कम से कम वो नागफणी तो नहीं बनेगा। यदि हमने ऐसा नहीं किया तो फिर हम संघर्षों के जाल में मकडी के जाले की तरह घिरते ही जाएँगे। नवीन संघर्ष प्रतिदिन आते हैं, उन्हें प्रतिदिन ही नष्ट करते चलिए, इन्हें एकत्र मत कीजिए। ये आम-वृक्ष नहीं हैं जो आपको मीठे फल देंगे, ये नागफणी के कांटे हैं जो तेजी से विस्तार लेंगे और उसके पंजे आपको चारों तरफ से घेरकर आफ स्वाभिमान को चकनाचूर कर देंगे। हम शराफत का मुखौटा ओढकर, शान्ति के दूत बनकर कब तक जीवन जीएँगे? मुझे याद आता है मेरा बचपन, जब किसी भी व्यक्ति के चेहरे पर मुखौटे नहीं हुआ करते थे। वे लडते थे, गरजते थे और हाथ भी उठाते थे अपना आक्रोश वे निकाल लेते थे। आज संघर्ष को हम टालते हैं, मीठा बोलने का प्रयास करते हैं और जब हमें बोलना चाहिए तब हम मौन हो जाते हैं। आज प्रत्येक व्यक्ति शान्तिदूत बनना चाहता है। कौरवों की सभा में धृतराष्ट्र सहित सारे ही बुजुर्ग मौन रहे, परिणाम महाभारत। नेहरू जी ने शान्तिदूत बनना चाहा, परिणाम मिला चीन से आघात। शास्त्री जी और इन्दिरा जी ने युद्ध का प्रत्युत्तर दिया परिणाम, युद्ध का स्वरूप बदल गया।
    मैं युद्ध की वकालात नहीं करती, मैं हिंसा की पैरवी भी नहीं करती लेकिन संघर्षों से जूझने का परामर्श अवश्य देती हूँ। उनसे भागने से कभी भी शान्ति प्राप्त नहीं होती। कुत्ता जब भौंकता है तब यदि आप डरकर भागते हैं तब वह भी आपको दौडाता है। लेकिन यदि आप आँखें दिखाकर उसके समक्ष खडे हो जाते हैं तब उसका स्वर बदल जाता है, वो कूँ, कूँ करने लगता है और उसकी पूँछ नीची हो जाती है। जब समुद्र के नीचे भूकम्प आता है तब लहरें डरकर समुद्र का साथ छोडकर तेजी से भागती हैं। ऐसे में वे दूसरों का भी विनाश करती हैं और स्वयं भी विनष्ट हो जाती हैं। अतः किसी भी युद्ध से डरिये मत, भागिए मत। आपका भागना न आफ लिए हितकर है और न ही दूसरों के लिए। जब आप भागने की आदत बना लेते हैं तब दुनिया में एक संदेश जाता है कि आप भागने में माहिर हैं तब अदना सा भी दुश्मन आपको डराने लगता है। एड्स रोग क्या है? हमारा शरीर घोषित कर देता है कि अब मैं कमजोर हो गया हूँ, मेरे पास संघर्ष की शक्ति समाप्त हो गयी है। परिणाम होता है कि ऐसे टुच्चे से जीवाणु, जिनका कोई वजूद ही नहीं होता और जिन्होंने कभी भी शरीर को आहत करने की हिम्मत नहीं की होती, वे भी सक्रिय हो जाते हैं और व्यक्ति को मारने में सफल हो जाते हैं।
    संघर्ष व्यक्ति का हो, समाज का हो या फिर देश का, कभी उससे मत भागिए। उसका डटकर मुकाबला करिए। एक विद्वान ने कहा था कि यदि हम किसी भी एक युद्ध में पाकिस्तान के साथ डटे रहते तो क्या होता? हमें आखिर डर किस बात का है? यदि हमारे दस-बीस करोड भी मर जाते तो उनके भी इतने ही मरते और वे इतने में तो पूर्णतया समाप्त हो जाते और हमारा तो फिर भी सौ करोड का देश, बहुत बच जाते। लेकिन रोज-रोज का झगडा तो मिट जाता। यह भी निश्चित है कि फिर कोई दूसरा संघर्ष हमारे समक्ष होता, लेकिन तब केवल वही होता। अब तो हम संघर्षों को एकत्र करते जा रहे हैं। पुराने भी और नए भी। आज भारत के पास संघर्षों की इतनी अधिकता है कि हम अपना गिनीज बुक में नाम लिखा सकते हैं। हमने सबकुछ प्रकृति पर छोड दिया है या फिर भगवान भरोसे। भारत में कहा गया है कि जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मैं अवतार लेता हूँ, तो हम निश्चिंत हैं। धर्म की हानि होने के सम्पूर्ण अवसरों की तलाश हम कर रहे हैं, जिससे शीघ्र ही प्रभु नए अवतार में अवतरित हों और हमें बचा लें।
    हमने हमारे अन्दर की ज्वाला को शान्त करने का बीडा उठा लिया है। हम सभी शान्ति का नोबेल पुरस्कार जीतना चाहते हैं। हम कभी भी इस बात का चिंतन नहीं करते कि जब-जब हमने परमाणु परीक्षण किया है तब-तब सारा विश्व हिला है और सभी ने दोस्ती का हाथ हमारी ओर बढाया है। लेकिन जब-जब हमने युद्ध के मैदान से अपने पैर पीछे खीचें हैं तब-तब हमें समझा-बुझाकर समझौता कराने भी कई देश आगे आए हैं और हम जीतकर भी हार गए हैं। आतंक का नया रूप हम बरसों से देख रहे हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर ने भी उसके मिजाज देख लिए। हमारे राष्ट्रीय नेता घोषणा करते हैं कि हम आतंककारियों को कडी से कडी सजा देंगे। शाम को ही चैनल वाले अफजल को जेल के अंदर चादर बिछाते हुए दिखा देते हैं। हम आखिर किस से डरते हैं? हम शायद सबसे अधिक अपने आपसे डरते हैं। अपने सुखों को खोने से डरते हैं। किसी आतंककारी को यदि सजा दे दी तो क्या पता देश में दंगे हो जाएँ और हमारा सुख छिन जाए। इसलिए शान्ति रखो, कुछ दिनों में भगवान ही परेशान होकर अवतार ले लेगा। आखिर इस सृष्टि का निर्माण किसने किया है, भगवान ने किया है। तब फिर वे ही इसकी समस्याओं से निजात दिलाएगा। समस्यायें हमने उत्पन्न की हैं तो हमको ही उसका समाधान भी ढूँढना चाहिए। हम अफजल को बचाकर क्या संदेश देना चाहते हैं? क्या इस देश का मुसलमान आतंककारियों के साथ है? या फिर हम पाकिस्तान से कमजोर हैं? न तो इस देश का कोई भी नागरिक आतंककारियों के साथ है और न ही पाकिस्तान से हम कमजोर हैं, यह बात हमारे शासकों को समझनी चाहिए। यदि एकाध प्रतिशत लोग आतंक का साथ देने आगे आते हैं तो ९९ प्रतिशत लोग आतंक के विरोध में आगे भी आ जाएँगे। एक बार परीक्षण करके तो देखिए। क्यों अपने ही लोगों से हमारा विश्वास उठ गया है? हम सब भारत के नागरिक राम और कृष्ण की संतान हैं, हमारे अंदर एक संस्कृति के तार बिछे हैं। हमने हजारों वर्षों से अनेक आस्थाओं को अपनाया है लेकिन फिर भी हम कभी भी आततायी नहीं बने। हमने आपस में तो युद्ध किए हैं लेकिन दूसरों पर कभी भी हमले नहीं किए। हमने हमारे घर में तो अपना अधिकार माँगा है लेकिन परायों से उनका अधिकार नहीं छीना है। अतः आइए हम संघर्षों को अपनाना सीखें, उनसे डरकर भागना नहीं। जैसे सुबह शबनमी होती है, लेकिन दोपहर तपते सूर्य को हमारे सर पर ला खडा कर देती है और फिर हम हँसते हुए शाम को सूर्य को ढलते देखते हैं, वैसे ही जीवन के संघर्षों को भी ग्रहण कीजिए और इसे अपने जीवन का एक हिस्सा मानकर इनसे पलायन का मार्ग मत ढूँढए। हम सब इस देश के नागरिक हैं, हमारा मनोबल ही देश का मनोबल बनता है अतः कभी भी अपने मनोबल को क्षीण मत होने दीजिए।

  6. #6
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    A salute to all the heroes n condolences to their families. Long live INDIA...!!

  7. #7
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  9. #9
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  10. #10
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    Hello All,

    Today its a month completed after this massacre, but these bullshit, so called terr****ts, could not affect the spirit of Mumbaikars or that matter for any Indian.

    Salute to all the stong Hearted people, and wish al the best to the two great Indian Hotels, Taj and Oberoi and a more successful run after the reopen last week.

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